हिम के शिखरों से
हिम के शिखरों से, शिव की जटाओं से,
भगीरथ प्रयासों से, निकली जो जल धार।
कल ,कल,बहती, पापो को हरती,
माँ गंगा के रूप में,अवतरित हुई धरा पर।
तुम सिर्फ जलधार नही तुम आस्था हो,
तुम विश्वास हो,पूर्वजो के तारन हार हो।
हिमशिखरों से सागर तक,छू ले जिस धरा कोहरितमा छा जाती है,तेरे पावन स्पर्श से।
तेरे पावन नीर से,तेरे मधुर संगीत से
,तुम जीवन दाता,मंत्र मुग्ध संसार है।
तुम सिर्फ नीर नही,जो छुधा मिटाती,
तुम अमृत हो,जो भक्तों को तारती।
तुम एक सभ्य ता हो,हिन्दुओं की आस्था हो,
तुम विश्वाश हो,जग का उल्लास हो।
मनोज तिवारी,,,निशान्त,,,
Poem , visiting news
भगीरथ प्रयासों से, निकली जो जल धार।
माँ गंगा के रूप में,अवतरित हुई धरा पर।
तुम सिर्फ जलधार नही तुम आस्था हो,
तुम विश्वास हो,पूर्वजो के तारन हार हो।
हिमशिखरों से सागर तक,छू ले जिस धरा कोहरितमा छा जाती है,तेरे पावन स्पर्श से।
तेरे पावन नीर से,तेरे मधुर संगीत से
,तुम जीवन दाता,मंत्र मुग्ध संसार है।
तुम सिर्फ नीर नही,जो छुधा मिटाती,
तुम अमृत हो,जो भक्तों को तारती।
तुम एक सभ्य ता हो,हिन्दुओं की आस्था हो,
तुम विश्वाश हो,जग का उल्लास हो।
मनोज तिवारी,,,निशान्त,,,
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